'देव यज्ञ' में देव पूजा और अग्निहोत्र कर्म किए जाते हैं
बलिया। रौंसड़ा गांव में शनिवार को भव्य कलश यात्रा के साथ शुरू हुई श्री शतचंडी पांच कुंडीय महायज्ञ के यज्ञाचार्य पंडित कृष्ण मोहन मिश्र ने बताया कि यज्ञ में हवन के माध्यम से ही देवताओं को प्रसन्न किया जाता है जिससे संसार को मनवांछित फल प्राप्त होते हैं । शास्त्रों में पांच प्रकार के यज्ञ का वर्णन मिलता है पहला 'ब्रह्मयज्ञ' जिसमें ईश्वर या इष्ट देवताओं की उपासना की जाती है, दूसरा 'देव यज्ञ' जिसमें देव पूजा और अग्निहोत्र कर्म किए जाते हैं, तीसरा 'पितृ यज्ञ' जिसमें श्राद्ध कर्म किए जाते हैं, चौथा 'वैश्वदेव यज्ञ' जिसमें प्राणियों को अन्न-जल प्रदान किया जाता है और पांचवा 'अतिथि यज्ञ' जिसमें मेहमानों की सेवा की जाती है। इन सभी में से 'देव यज्ञ' में ही हवन आदि का प्रावधान है।
उन्होंने बताया कि जब देवताओं व राक्षसों की ओर से किए गए समुंद्र मंथन के दौरान महालक्ष्मी प्रकट हुईं, तब सबसे पहले उसका शतचण्डी यज्ञ के साथ महर्षि पूजन किया गया तथा मलमास के दौरान मकर सक्रांति के मौके पर भारत खण्ड के स्वयंभू प्रथम मानव महर्षि मनु ने सबसे पहले महालक्ष्मी का शतचण्डी यज्ञ के साथ पूजन किया। इसलिए इस यज्ञ का बहुत बड़ा धार्मिक महत्व है तथा इस यज्ञ को मल मास में सरोवर अथवा नदी के किनारे करने से उत्तम फल की प्राप्ति होती है। उन्होंने बताया कि इस यज्ञ के साथ मां जगदम्बा के सभी रूपों का आह्वान किया जाता है तथा प्रतिदिन यज्ञाचार्य द्वारा यजमान हरिकृष्ण मोहन (डिम्पू), रामसिंह गोंड़, जवाहर पटेल, बृजेश श्रीवास्तव, लल्लन यादव और रुपेश यादव द्वारा सपत्नीक वैदिक मंत्रोच्चारों के साथ यज्ञशाला में बने हवन कुंड में आहुतियां दी जाएंगी।
महायज्ञ में श्रद्धालु प्रतिदिन मध्याह्न 12:00 बजे और शाम 8:00 बजे से वृंदावन से पधारी रासलीला के सजीव मंचन का आनंद लेते हुए श्री शतचंडी पंच कुंडी महायज्ञ में बने यज्ञशाला का परिक्रमा कर रहे हैं।