बलिया में "हम चले साहित्यकार के द्वार" के क्रम में स्व० डाॅ० रामसेवक"विकल" के गांव पहुंचे कवि

बलिया। बलिया जनपद के भोजपुरी साहित्य में अपना विशेष मुकाम रखने वाले स्व० डॉ० रामसेवक "विकल" की स्मृतियों को नमन करने वरिष्ठ साहित्यकार भोला प्रसाद "आग्नेय", डॉक्टर रमाशंकर "मनहर", युवा कवि शेषनाथ विद्यार्थी और युवा रचनाकार विनोद राजवंशी उनके इसारी सलेमपुर स्थित पैतृक आवास पहुंचे, जहां स्व० "विकल" के साहित्यकार पुत्र डॉ आदित्य कुमार "अंशु" ने गर्मजोशी से स्वागत किया।
स्व० "विकल" की साहित्यिक स्मृतियों को नमन करने हेतु "हम चले साहित्यकार के द्वार" मुहिम के अंतर्गत एक कवि गोष्ठी का आयोजन किया गया, गोष्ठी में आगंतुक कवियों ने अपनी रचनाओं से साहित्यिक रसपान कराया। 

गोष्ठी की शुरुआत युवा कवि शेषनाथ 'विद्यार्थी' के देवी वंदना 'मैया पहड़वा वाली' रचना के साथ हुई।
गोष्ठी में डॉक्टर रमाशंकर "मनहर" के गीत 'उज्जवल चादर में ये छींटे आज कहां से आए' के माध्यम से समाज को एक संदेश देने की कोशिश बहुत ही सराहनीय रही।
वहीं युवा कवि विनोद "राजवंशी" ने अपनी रचना से समाज को एक सूत्र में पिरोने का प्रयास किया।
वरिष्ठ साहित्यकार भोला प्रसाद "आग्नेय" ने अपने मुक्तक 'घर से बाहर जब रहते हैं- एक-एक लड़की पर मरते हैं' से वर्तमान सामाजिक सोच पर कुठाराघात कर समाज को एक आईना दिखाने की कोशिश की, उन्होंने 'मेरा बेटा है बिकाऊ खरीददार चाहिए, कोई अच्छी सी पार्टी दमदार चाहिए' के माध्यम से दहेज लोभियों को खूब धोया।
गोष्टी के अंत में स्वागत कर्ता एवं गोष्ठी संचालन कर्ता कवि डॉ० आदित्य कुमार "अंशु" ने अपनी पुस्तक "आइल बसंत" की रचना 'आज अवध नगरिया गुलजार भइल बा कोटि भक्तन के सपना साकार भइल बा' से गोष्ठी को भक्तिमय बना दिया। अंत में उन्होंने अपने घर आए आगंतुक कवियों के प्रति आभार व्यक्त किया।

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