जीवन को भगवान बनकर नहीं, एक आदर्श इंसान बनकर मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम के आदर्शों को आत्मसात करें - डॉ. रागिनी सरस्वती
भीमपुरा। आरीपुर सरया गांव में आयोजित नौ-कुण्डीय श्री विष्णु महायज्ञ के अंतर्गत चल रही राम कथा का समापन भाव-विभोर वातावरण में हुआ। अंतिम दिन प्रख्यात कथा वाचिका मानस मंदाकिनी डॉ. रागिनी सरस्वती ने श्रद्धालुओं को रामकथा के अमृत-संदेश से सराबोर कर दिया।
डॉ. रागिनी सरस्वती ने कहा कि जीवन में भगवान बनने की आवश्यकता नहीं, बल्कि एक आदर्श इंसान बनने की जरूरत है, क्योंकि मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम भी मानव रूप में अवतरित हुए और अपने आचरण से मानवता का संदेश दिया। उन्होंने कहा कि यदि मनुष्य में संवेदनशीलता आ जाए, दूसरों के दुख को समझने और महसूस करने की प्रवृत्ति उत्पन्न हो जाए तो जीवन सफल और सार्थक हो जाता है।
कथावाचिका ने कहा कि राम एक आदर्श मानव की परिकल्पना हैं और रामकथा का प्रत्येक पात्र मानव जीवन को दिशा देने वाला है। जटायु के त्याग का उल्लेख करते हुए उन्होंने बताया कि एक पक्षी ने नारी की मर्यादा की रक्षा के लिए अपने प्राण अर्पित कर दिए, इससे बड़ा आदर्श और क्या हो सकता है। सबरी के प्रसंग का वर्णन करते हुए कहा कि प्रभु ने प्रेम के श्रेष्ठ स्वरूप को स्वीकारते हुए उसकी कुटिया में प्रसाद ग्रहण किया, जो भक्ति की चरम सीमा का उदाहरण है।
उन्होंने आगे कहा कि रामकथा ज्ञान और भक्ति का वह गहरा सागर है, जिसकी महिमा का वर्णन करना संभव नहीं। “जो खोजा तिन पइया, गहरे पानी पैठ” कहकर उन्होंने बताया कि जो श्रद्धा और समर्पण के साथ कथा में उतरता है, वही उसके आध्यात्मिक सार को प्राप्त करता है।
डॉ. रागिनी सरस्वती ने रामकथा को शैव-वैष्णव, शाक्त, राजा-प्रजा, ग्राम-नगर, सभी के समन्वय का अद्भुत संगम बताया, जो भारतीय संस्कृति की मूल आत्मा है।
कथा के समापन पर श्रद्धालुओं की भारी भीड़ उमड़ी। यज्ञ स्थल पर भक्ति, श्रद्धा और उत्साह का अद्भुत संगम देखने को मिला। आयोजकों ने सभी भक्तों एवं सहयोगियों के प्रति आभार व्यक्त किया।



