बलिया न्यायालय के आदेश के बाद पशुहारी में दरगाह/मजार की भूमि को लेकर गंभीर विवाद की स्थिति

रिपोर्ट- ओमप्रकाश सिंह

कब्जा, विवाद और पुलिस की दखलंदाजी

बलिया। बलिया न्यायालय पश्चिमी के सिविल जज (जू.डि.) सत्येन्द्र कुमार मौर्या द्वारा 16 अक्टूबर 2025 को एकपक्षीय अंतरिम निषेधाज्ञा जारी किए जाने के बाद, ग्राम पशुहारी में दरगाह/मजार की भूमि को लेकर गंभीर विवाद खड़ा हो गया है।
न्यायालय का एकतरफा आदेश
न्यायालय ने मुख्य ट्रस्टी रजी अहमद (वादी) के पक्ष में अंतरिम निषेधाज्ञा जारी की। यह आदेश प्रतिवादी जहीर को विवादित दरगाह भूमि आ. नं. 366 के पश्चिमी हद उत्तर से दक्षिण 30 फीट व पूरब-पश्चिम 20 फीट (नक्शा वादपत्र में नि. हि. 1-2-3-4) को सुचारू रूप से चलाए जाने में कोई हस्तक्षेप न करने के लिए दिया गया था।
महत्वपूर्ण: 
न्यायालय के इस आदेश में जमीन पर कब्जा करने का कोई सीधा आदेश नहीं था, बल्कि यह केवल प्रतिवादी को हस्तक्षेप से रोकने के लिए एक अस्थायी निषेधाज्ञा थी। यह आदेश प्रतिवादी को सुने बिना, वादी द्वारा दाखिल ट्रस्ट डीड और रंगीन फोटो के आधार पर, यह मानते हुए पारित किया गया कि प्रथमदृष्टया मामला वादी के पक्ष में बन रहा है।
वादी का कब्जे का प्रयास और टकराव
न्यायालय के आदेश के ठीक तीसरे दिन, 19-10-2025 को, वादी रजी अहमद अपने साथी मंजूर अहमद और 15 से 20 अज्ञात लोगों के साथ, जिनमें रेडिमेड पिलर, फावड़ा, रम्बा, लाठी-डंडे और हथियार थे, कथित तौर पर जमीन पर कब्जा करने के इरादे से पहुंचे।
प्रतिवादी की स्थिति:
81 वर्षीय जहीर अहमद (प्रतिवादी), जो छह स्टेंट के साथ गंभीर हृदय रोगी हैं, वादी की अचानक कार्रवाई से स्तब्ध रह गए।
पुलिस हस्तक्षेप:
शोर-शराबा सुनकर ग्रामीण और प्रतिवादी के पुत्र शब्बीर अहमद पहुंचे। शब्बीर ने तुरंत डायल 112 को कॉल किया।
इंस्पेक्टर का स्टैंड:
मौके पर पहुंची पुलिस और ग्रामीणों की हकीकत जानने के बाद, उभांव इंस्पेक्टर ने वादी के पूर्व मुंसिफ होने के रुतबे और धमकी की परवाह न करते हुए, वादी समूह को कड़े शब्दों में वापस जाने का आदेश दिया। वादी पक्ष पुलिस को कोर्ट में देखने की धमकी देकर नाराज़ होकर वापस चला गया।
पुलिस में शिकायत
इस घटना से मजार के खादिम (प्रतिवादी जहीर) की तबियत खराब हो गई। प्रतिवादी के पुत्र शब्बीर अहमद ने उभांव थाने में वादी रजी अहमद और उनके साथियों के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने के लिए लिखित तहरीर दी। तहरीर में जान से मारने की धमकी, गाली-गलौज, भूमि हड़पने का प्रयास और गंभीर हृदय रोगी पिता की जान लेने की योजनाबद्ध नीयत का आरोप लगाया गया है। इंस्पेक्टर ने जांच के बाद कार्रवाई का आश्वासन दिया है।
प्रतिवादी का जवाब और दावा
17 नवंबर 2025 को, प्रतिवादी जहीर अहमद ने न्यायालय में जवाबदेही (आपत्ति विरुद्ध दरखास्त हक्मइम्तनाई 6ग2) दाखिल कर दी है।
कब्जा इनकार: 
आराजी नंबर 366 के किसी भी भाग का कोई हिब्बा (दान) वादी या ट्रस्ट के पक्ष में नहीं किया गया है, और न ही उस पर वादी का कब्जा रहा है।
खुद का कब्जा:
दरगाह और आसपास की भूमि पर प्रतिवादी का कब्जा-दखल है और उसने उसे घेरकर महफूज रखा है।
कानूनन भूमि मुस्लिम विधि से शासित नहीं है, बल्कि इस पर वर्तमान में UPRC के कानून प्रभावित हैं।
वारिसों को फरीक न बनाना: 
सह-खातेदार मो. शहीद की वफात के बाद उनके वारिसों को फरीक (पार्टी) नहीं बनाया गया है।
प्रतिवादी ने वादी पर संत पिता की वफात के 26 साल बाद मजार से रोजगार अर्जित करने का इरादा रखने का आरोप लगाया है।
अगली सुनवाई
पत्रावली पर अगली सुनवाई की तारीख 17-11-2025 तय की गई थी (जिसमें प्रतिवादी ने आपत्ति दाखिल की), और अब अंतरिम निषेधाज्ञा पर आपत्ति/निस्तारण के लिए यह मामला आगे बढ़ेगा।जिसका अगली तारीख 24-11-2025 है।
यह मामला बलिया न्यायालय में चल रहे एक सिविल वाद और उससे जुड़े गंभीर आपराधिक विवाद को दर्शाता है। यह स्थिति कई महत्वपूर्ण कानूनी और नैतिक पहलुओं को उजागर करती है।
कानूनी प्रक्रिया का दुरुपयोग और सामाजिक तनाव
यह घटनाक्रम दिखाता है कि कैसे एक एकपक्षीय न्यायिक आदेश (Ex-parte Order) का दुरुपयोग करके कानूनी प्रक्रिया को दरकिनार करते हुए तत्काल ज़मीन पर कब्जा करने का प्रयास किया गया, जिससे गंभीर सामाजिक और कानूनी जटिलताएं उत्पन्न हुईं।
न्यायिक प्रक्रिया पर प्रश्न, एकपक्षीय आदेश का प्रभाव 
सिविल जज (जू.डि.) द्वारा प्रतिवादी को सुने बिना अंतरिम निषेधाज्ञा जारी करना (हालांकि कानूनी रूप से यह संभव है, लेकिन सतर्कता की अपेक्षा होती है) तुरंत विवाद का कारण बन गया। यह आदेश केवल हस्तक्षेप रोकने का था, न कि कब्जा करने का। वादी ने इस आदेश की व्याख्या कब्जा प्राप्त करने के रूप में की, जो न्यायिक प्रक्रिया का स्पष्ट दुरुपयोग है।
अविलंब कार्रवाई: आदेश के तीसरे ही दिन वादी का 15-20 लोगों, पिलर और हथियारों के साथ मौके पर पहुंचना दर्शाता है कि उनका प्राथमिक उद्देश्य निषेधाज्ञा प्राप्त करने के बाद तुरंत भौतिक कब्ज़ा जमाना था, न कि कानूनी प्रक्रिया का पालन करना।
कानून और व्यवस्था की स्थिति
पुलिस की सराहनीय भूमिका: उभांव इंस्पेक्टर और डायल 112 की टीम ने मौके पर स्थिति की गंभीरता को समझा। वादी के कथित "रूतबे" या धमकी के बावजूद, उन्होंने बलपूर्वक कब्जे के प्रयास को रोककर कानून और व्यवस्था बनाए रखी। यह स्थानीय प्रशासन की निष्पक्षता और तत्परता को दर्शाता है, जिसने एक बड़े टकराव को टाला।
आपराधिक पहलू:
वादी पक्ष का हथियारों और समूह के साथ आना, तथा 81 वर्षीय हृदय रोगी प्रतिवादी को धमकाना, सिविल विवाद को आपराधिक आयाम दे रहा है। पुलिस में दर्ज तहरीर के बाद अब इस मामले में कानूनी कार्रवाई का आपराधिक पक्ष भी शुरू हो गया है।
मूल विवाद की प्रकृति (हिब्बा और कब्जा)
संदेह की स्थिति: 
प्रतिवादी की आपत्ति यह प्रश्न उठाती है कि क्या वास्तव में 26 साल पहले कोई वैध "हिब्बा" (दान) हुआ था। प्रतिवादी का दावा है कि भूमि पर आज भी उनका कब्जा है और यह मुस्लिम विधि के तहत शासित नहीं है।
वादी का उद्देश्य:
प्रतिवादी का यह आरोप कि वादी का इरादा मजार के नाम पर "विदेशों से पैसा मंगाकर" मौज-मस्ती करना है, विवाद के पीछे के वित्तीय और निजी स्वार्थ की ओर इशारा करता है, न कि केवल धार्मिक श्रद्धा की।
निष्कर्ष और आगे की राह
अब जबकि प्रतिवादी ने अपनी आपत्ति और जवाबदेही दाखिल कर दी है, न्यायालय को दोनों पक्षों को सुनकर और दस्तावेजी साक्ष्यों का गहन अवलोकन करके अंतरिम निषेधाज्ञा पर अंतिम निर्णय लेना होगा।
इस मामले में, न्यायिक प्रक्रिया के दुरुपयोग और कानून-व्यवस्था के उल्लंघन के प्रयास को गंभीरता से लिया जाना चाहिए ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि केवल कानूनी रूप से सशक्त पक्ष ही अदालत की प्रक्रिया का लाभ उठा सके, न कि वह पक्ष जो बल प्रयोग करके जमीन पर कब्ज़ा करना चाहता हो।
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