रिपोर्ट - ओमप्रकाश सिंह
बलिया। पूर्वी उत्तर प्रदेश के किसान इस समय भयंकर सूखे की मार झेल रहे हैं। विशेषकर बलिया, देवरिया, गाजीपुर समेत पूरे पूर्वांचल में जुलाई माह तक मानसूनी बारिश न के बराबर हुई है, जिससे धान की रोपाई प्रभावित हो गई है और खेतों में दरारें पड़ गई हैं। किसानों की आजीविका और फसल दोनों संकट में है।
जुलाई का समय परंपरागत रूप से धान की रोपाई और बुवाई का चरम समय होता है, लेकिन इस वर्ष बारिश न होने से खेत सूखे पड़े हैं नहरों में पानी नहीं ट्यूबवेल से सिंचाई महंगी और सीमित हो गई है। 60% से अधिक किसानों ने अब तक धान की बुवाई शुरू ही नहीं की, किसानों का कहना है कि अगर अगले एक सप्ताह में बारिश नहीं हुई तो धान की फसल पूरी तरह चौपट हो सकती है। वहीं किसानों का ये भी कहना है कि “ना पानी है, ना बिजली, ना डीजल सस्ता है। ऐसे में हम क्या खेती करें ? हमारी फसल नहीं होगी तो घर कैसे चलेगा?”
किसानों की मांग है कि
1. सूखा प्रभावित क्षेत्र घोषित करने की प्रक्रिया
2. फसल बीमा योजना के तहत मुआवजा।
3. बिजली आपूर्ति में प्राथमिकता।
4. डीजल पर सब्सिडी।
5. नलकूपों और ट्यूबवेल के लिए विशेष छूट।
6. ऋण पुनर्गठन या माफी
लेकिन ये सब फिलहाल कागज़ों तक सीमित नजर आ रहे हैं।
किसानों की मांग तत्काल सूखा घोषित कर राहत की घोषणा की जाए मुफ्त सिंचाई की व्यवस्था की जाए डीजल, बिजली पर सब्सिडी दी जाए फसल बीमा की प्रक्रिया सरल और त्वरित की जाए।
सूखा राहत पैकेज किसानों के बैंक खाते में सीधे भेजा जाए।
पूर्वांचल का किसान इस समय प्राकृतिक आपदा और सरकारी उदासीनता दोनों का सामना कर रहा है। यदि सरकार ने समय रहते ठोस कदम नहीं उठाया, तो भविष्य में खाद्यान्न संकट, आर्थिक तंगी और किसानों की आत्महत्याओं की आशंका से इनकार नहीं किया जा सकता।
यह सिर्फ एक क्षेत्र की समस्या नहीं, बल्कि पूरे उत्तर भारत की खाद्य सुरक्षा का सवाल है।